NAGASAKI DAY THE BOMBING THAT ENDED WORLD WAR-II

NAGASAKI DAY THE BOMBING THAT ENDED WORLD WAR-II

1945 में जापान के नागासाकी पर एक परमाणु बम गिराया गया था।
1945 में जापान के नागासाकी पर एक परमाणु बम गिराया गया.

9 अगस्त 2020 के दिन नागासाकी दिवस उन लोगों और मासूम बच्चों को याद करने के लिए मनाया जाता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के रूप में मारे गए थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में जापान के नागासाकी पर एक परमाणु बम गिराया गया था। नागासाकी बमबारी की 75वीं वर्षगांठ पर जानते हैं इससे जुड़े तथ्य...


9 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के तीन दिन बाद अमेरिका ने जापान के नागासाकी में एक और बम गिरा दिया। उसे "पेंट मैन" नाम दिया गया था। इस परमाणु बम का वजन करीब 10,000 पाउंड था, जो लगभग 11 फीट लंबा था, और इसमें 20,000 टन विस्फोटक की क्षमता थी।


शुरुआत में USA की हिट लिस्ट में 5 जापानी शहर थे, जिनमें नागासाकी शामिल नहीं था। सूची में कोबरा, हिरोशिमा, योकोहामा, निगाता और क्योटो शामिल थे। कहा जाता है कि क्योटो को इसलिए बख्शा गया क्योंकि अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी स्टिम्सन प्राचीन जापानी राजधानी को पसंद करते थे।



9 अगस्त 1945 को सुबह 1:02 बजे बम विस्फोट हुआ। नागासाकी के निवासियों ने सोचा कि यह जमीन से टकराया और विस्फोट हो गया, लेकिन ये शहर के ऊपर हवा में ही फट गया, जिसके चलते ये ज्यादा घातक हो गया।


परमाणु बम ले जाने वाला विमान B-29 सुपरफोर्ट था, जो द्वितीय विश्व युद्ध में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ। बाद में विमान का नाम "बोक्सस्कर" रखा गया था।


धमाके से लगभग 5 वर्ग मील का क्षेत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया और तकरीबन 55,000 लोग बमबारी में मारे गए। हालांकि यह बम हिरोशिमा पर इस्तेमाल होने वाले की तुलना में अधिक शक्तिशाली था, लेकिन उनके मी घाटी की पहाड़ियों ने इसके प्रभाव को सीमित कर दिया।


हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर सबसे विनाशकारी बम हमला न तो हिरोशिमा था और न ही नागासाकी, बल्कि 9 मार्च, 1945 को यूएसए ने टोक्यो पर बमबारी सबसे ज्यादा तबाही लाने वाली थी। इसमें 1 लाख से अधिक लोग मारे गए थे बड़ी आबादी घायल हो गई थी।


नागासाकी और हिरोशिमा पर संयुक्त राज्य अमेरिका की परमाणु बमबारी ने जापान को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया, इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। लेकिन, इन जापानी शहरों में आज 75 साल बाद भी विनाशकारी बीमारी का असर महसूस किया जा रहा है।


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